ऑपरेशन ‘भगवान का कोप’; जब 20 साल तक गिरती रही दुश्मनों की लाशें, इजरायल के बदले की कहानी

ऑपरेशन ‘भगवान का कोप’; जब 20 साल तक गिरती रही दुश्मनों की लाशें, इजरायल के बदले की कहानी


Israel Wrath Of God Operation: हमास आतंकियों के साथ पहले ही युद्ध झेल रहे इजरायल पर अब ताकतवर मुस्लिम देश ईरान की भी टेढ़ी नजर है। ईरान सीरिया, लेबनान के हिजबुल्लाह के साथ इजरायल पर धावा बोलने की तैयारी कर रहा है। हाल ही में ईरान की हमले की प्लानिंग भी सामने आई थी। लेकिन, इजरायल दावा कर रहा है कि वो किसी भी हमले के लिए तैयार है। यह पहली बार नहीं है, जब इजरायल पर हमलों का पहाड़ टूट पड़ा हो, पहले भी कई मौके आए, जब इजरायल ने हफ्ते भर में एक साथ तीन देशों को मात दे दी थी। इसके पीछे की बड़ी वजह है- इजरायल की अंदरुनी ताकत। इजरायल के पास आईडीएफ जैसी ताकतवर सेना और खुफिया एजेंसी मोसाद का बल है। जिसके बल पर उसने कई बार दुश्मनों को धूल चटाई है। इजरायल के ऐसे कई ऑपरेशन हैं, जिसमें उसने बड़ी ही चालाकी से दुश्मन को उसी के घर पर मात दी। कुछ दिन पहले हमास के चीफ इस्माइल हानियेह को ईरानी धरती पर मौत की नींद सुलाकर इजरायल अपनी ताकत का प्रदर्शन कर चुकी है। ऐसा ही इजरायल का एक ऑपरेशन था- रैथ ऑफ गॉड या भगवान का कोप। इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने मौत का ऐसा तांडव मचाया कि 20 साल तक दुश्मनों की लाशें गिरती रहीं।  

1972 में जर्मनी के म्यूनिख में हुए ओलंपिक की बात है। पूर्व तानाशाह एडोल्फ हिटलर के क्रूर शासन की तस्वीर को बदलने के लिए जर्मनी ने सफल ओलंपिक कार्यक्रम का जिम्मा उठाया था लेकिन, इस कार्यक्रम में बड़ा बवाल तब हुआ जब रातों-रात इजरायल के 11 एथलीटों और कोच को मौत के घाट उतार दिया गया। फिलिस्तीनी आतंकी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर ने इजरायली एथलीटों का अपहरण किया। उन्हें बुरी तरह पीटा और दो को मौत के घाट उतार दिया। बाकी 9 खिलाड़ियों के साथ इजरायल के साथ मोल-भाव पर उतर आया। उसने इजरायल से डिमांड की कि वो उसके आतंकी साथियों को रिहा करे। इसमें जब जर्मनी ने अपनी सेना उतार दी तो मारे गुस्से के ब्लैक सेप्टेंबर ने सभी इजरायली खिलाड़ियों को मार डाला।

म्यूनिख नरसंहार क्या है?

5 सितंबर 1972 को ब्लैक सेप्टेंबर के आठ आतंकियों ने म्यूनिख के ओलंपिक गांव में घुसपैठ की। AK-47 से लैस होकर उन्होंने 11 इजरायली एथलीटों और कोचों को बंधक बना लिया। शुरुआती हमले में दो की हत्या कर दी। आतंकवादियों ने इजरायली जेलों से 234 कैदियों की रिहाई की मांग की। गतिरोध कई घंटों तक चला। इस दौरान जर्मन अधिकारियों ने नेगोशिएशन का प्रयास किया। इस पर आतंकवादी एक हवाई क्षेत्र में चले गए, जहां उन्हें बताया गया कि दो UH-1 सैन्य हेलीकॉप्टर उन्हें काहिरा ले जाएंगे। जब इस बीच जर्मन पुलिस द्वारा बचाव का प्रयास किया गया तो आतंकियों ने शेष सभी इजरायली खिलाड़ियों को मार डाला। इस मुठभेड़ में एक जर्मन पुलिस अधिकारी और पांच आतंकवादी भी मारे गए।

इजरायल का ‘भगवान का कोप’ ऑपरेशन

उस वक्त इजरायल की बागडोर गोल्डा मेयर के हाथों पर थी। अपने लोगों की मौत का बदला लेने के लिए इजरायल छटपटा रहा था। उन्होंने कसम खाई कि दु्श्मनों को चुन-चुनकर मारा जाएगा। इसके लिए मोसाद को जिम्मेदारी दी गई। मोसाद के तत्कालीन जाने-माने जासूस माइक हरारी को कमान सौंपी गई। ये ऑपरेशन गुप्त रूप से शुरू किया गया। मोसाद ने दुनिया के कोने-कोने से अपने दुश्मनों को ढूंढा और मौत के घाट उतारा। 20 साल तक यह सिलसिला जारी रहा। तब दुनिया ने देखा कि इजरायल कुछ भी कर सकता है।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1984 में आई किताब ‘वेन्जन्स’ यानी प्रतिशोध में कनाडाई लेखक और पत्रकार जॉर्ज जोनस ने ‘रैथ ऑफ गॉड’ की काफी डिटेल हैं। इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ब्लैक सेप्टेंबर ग्रुप के आतंकियों को पूरे यूरोप और मध्य पूर्व देशों में खोज-खोज कर मारा। इस ऑपरेशन में एक दर्जन से अधिक फिलिस्तीनी चरमपंथी मारे गए।

फिल्मी अंदाज में मारे दुश्मन

मोसाद ने इस ऑपरेशन में म्यूनिख नरसंहार के दोषियों को ढूंढ-ढूंढकर मार डाला। पहला शिकार वाएल ज्वाइटर थे। वह रोम में रहने वाले फिलिस्तीनी कवि और संगठन से जुड़े हुए थे। मोसाद के मुताबिक, वाएल ब्लैक सेप्टेंबर (पीएलओ) का चीफ था और म्यूनिख नरसंहार का मास्टरमाइंड। 16 अक्टूबर, 1972 को, मोसाद के दो जासूसों ने ज़्वाइटर पर उसके अपार्टमेंट की लॉबी में घात लगाकर हमला किया और उसे 11 बार गोली मारी।

इसके बाद फ्रांस में महमूद हमशारी को मार डाला। मोसाद ने उन्हें उनके पेरिस अपार्टमेंट तक ट्रैक किया और पत्रकार बनकर उनके टेलीफोन में बम लगाने में कामयाब हो गए। 8 दिसंबर 1972 को उन्होंने बम विस्फोट किया, जिसमें हमशारी की मौत हो गई। फिर साइप्रस में रहने वाले पीएलओ के एक और नेता हुसैन अल बशीर को निशाना बनाया। 24 जनवरी 1973 को मोसाद ने निकोसिया के एक होटल में उनके बिस्तर के नीचे बम लगा दिया। विस्फोट में बशीर की तुरंत मौत हो गई।

औरतों का वेष बनाकर मारा

सबसे साहसी कदम 10 अप्रैल 1973 को बेरूत में अंजाम दिया गया। मोसाद के जासूसों ने औरतों के वेश में बेरूत में घुसपैठ की। इस ऑपरेशन में तीन लोगों को निशाना बनाया गया- मोहम्मद यूसुफ अल-नज्जर, कमाल अदवान और कमाल नासर। मोसास उनके घरों तक घुसे और बड़ी ही चालाकी से मार डाला।

इसके अलावा रेड प्रिंस के नाम के कुख्यात अली हसन सलामेह को मोसाद ने निशाना बनाया। सलामेह ब्लैक सेप्टेंबर का डिप्टी था। 1979 में मोसाद एजेंट ने अपनी पहचान छिपाकर सलामेह और उसकी पत्नी से दोस्ती की और 22 जनवरी 1979 को बेरूत में उनकी कार बम लगाकर हत्या कर दी।