पुरोहितों के अनुसार परिवार में सुख समृद्धि, शांति व वंशवृद्धि के लिए व्यक्ति को स्वयं अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्धपक्ष में कुछ लोग अपने पितरों का ऑनलाइन श्राद्ध कराते हैं, यह शास्त्र सम्मत नहीं है।
शारीरिक रूप से अक्षम होने पर भी व्यक्ति को ऑनलाइन श्राद्ध नहीं कराना चाहिए, बल्कि अपने परिवार के किसी सदस्य को अपने प्रतिनिधि के रूप में तीर्थ पर भेज कर श्रद्धा की विधि संपन्न कराना चाहिए।
पितरों को देवता से पहले दिया गया है स्थान
वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित व ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया नौ पुराण, अलग-अलग धर्म ग्रंथ तथा स्मृति ग्रंथों में कर्मकांड की पद्धति को विशेष बताया गया है। धर्मशास्त्रों में पितरों को देवता से पहले स्थान दिया गया है। परिवार के पितरों की तृप्ति से देवता भी अनुकूल हो जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार तीर्थ का अपना विशेष महत्व है।
तीर्थ पर आकर ही श्राद्ध करना चाहिए
पितरों से संबंधित जल दान, पिंड दान जिसके अंतर्गत देव, ऋषि, पितृ, दिव्यमनुष्य तर्पण, तीर्थ श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, अन्वष्टका श्राद्ध यह सभी तीर्थ पर ही संपादित होते हैं। क्योंकि तीर्थ पर देवताओं का वास होता है। तीर्थ पर नदी में अन्य देवी देवताओं की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। उन्हीं की साक्षी में पितरों की तृप्ति होती है। इस दृष्टि से तीर्थ पर आकर के ही श्राद्ध करें।
कुल लोग धर्मशास्त्री की मान्यता व शास्त्र सम्मत जानकारी के अभाव में अपने पुरोहितों से पितरों का ऑनलाइन श्राद्ध कराते हैं, जो कि अनुचित है। किसी भी स्थिति में बिना वंशज की साक्षी के बिना पितृ श्राद्ध स्वीकार नहीं करते हैं।
गया श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध आवश्यक
पं.डब्बावाला ने बताया पद्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध नित्य है, नैमितिक है, कामना परक है, श्राद्ध को करने के 96 अवसर शास्त्र और पुराण के माध्यम से बताए गए हैं। यदि गया श्राद्ध किया जा चुका है तो इसका यह अर्थ नहीं की गया में पितरों को छोड़कर के आ गए हो, गया श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध या तीर्थ श्राद्ध, तर्पण श्राद्ध आदि करना आवश्यक है।