हरियाणा विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों के लिए लड़ाई आसान नहीं है। भाजपा के सामने दस वर्ष की सत्ता विरोधी लहर है, तो कांग्रेस अंदरुनी कलह से जूझ रही है। हालांकि, लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर आ रहा है। चुनाव में इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है।
कांग्रेस के सामने कई और मुश्किलें भी हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी दस में से पांच सीट जीतने में सफल रही थी, पर इन चुनाव में राज्य की 90 विधानसभा सीट में से 42 पर ही बढ़त बना पाई। वहीं, भाजपा ने पांच सीट जीतकर 44 सीट पर अपना वर्चस्व कायम रखा। यह भाजपा को वर्ष 2019 के चुनाव में मिली 40 सीट के मुकाबले चार ज्यादा है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में हर सीट पर करीब तीस नेताओं की दावेदारी के बावजूद कांग्रेस की दूसरी पार्टियों के विधायकों पर नजर है।
पार्टी की नजर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के तीन विधायकों सहित भाजपा पर भी है, ताकि चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतकर वह सत्ता की दहलीज तक पहुंच सके। हरियाणा में जीत के लिए जादुई आंकड़ा 46 है।
खरगे-राहुल की हिदायत का भी असर नहीं
विधानसभा चुनाव के दौरान अंदरुनी गुटबाजी थामने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रदेश नेताओं को सख्त हिदायत दी है, पर पार्टी नेता मानते हैं कि इसका कोई खास असर नहीं होगा। क्योंकि, हरियाणा में गुटबाजी काफी लंबे वक्त से है और पार्टी इसे थामने में नाकाम रही है। लोकसभा टिकट बंटवारे में भी गुटबाजी हावी रही।
एकजुट रहे तो कांग्रेस को मिल सकती है सफलता
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हरियाणा में मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की तरफ है, पर इसके लिए एकजुटता जरूरी है। प्रदेश कांग्रेस नेता चुनाव प्रचार के दौरान आपसी मतभेद दूर करने में नाकाम रहते हैं, तो चुनाव में नुकसान हो सकता है। क्योंकि, भाजपा जहां पूरी ताकत झोंक रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) के अकेले चुनाव लड़ने से भाजपा विरोधी बंट सकते हैं।